Wednesday, March 19, 2014

वे दो ‘शब्द-शहद’ रस उनके …!

वे दो शब्द-शहद’ रस उनके .....!
*********************************

आंखे चार हुई, जब  उनसे ,
सुर्ख गुलाब हुई मैं, शर्म से.


वे दो शब्द-शहदरस उनके,
मेरे जीवन की शहनाई बने .


सुरभित हुआ जीवन ये अपना
नित  नया मधुमास     बना .


खिलते - उपवन को   हमने ,
बड़े - नेह से  सींचा - मिलके .


बसंत-बहार, सावन -   भादों ,
 मिलकर  बांटे  थे,  हम -दोनों .


अजब  बनाया जग में न्यारा ,
कुदरत ने ये - रिश्ता है  प्यारा  .


उस मालिकसे है, ये दुवा ,
विनती सुन लो ऐ मेरे खुदा !


बना  रहे ये - नेह  का  साया ,
जब तक मुझमें जीवन समाया .

__________


मीनाक्षी श्रीवास्तव


No comments:

Post a Comment

welcome in my blog.plz write your good comments to incourage me.thanks.