Friday, February 10, 2012

माँ की सीख

  माँ की सीख                                                          

बेटी की भोली बातें सुन   ,
माँ ने  उसे  गले लगा   ,
 प्यार से  सिर पे हाथ फेर  ,
अति  नेह से पास  बैठाया ,
फिर कुछ ' वो ' बोले , रोक;
माँ ने  उसको   समझाया ,
सुन- बेटी, इस 'जग' की , 
 औ , जगवालों की बातें ,
ध्यान से सुनना और ,
समझना रहना  नहीं,
तुम्हें   अब  नादान ,
उंच - नीच दुनियादारी ,
समझदारी    की ,
 सारी   बातें  माँ ने ,
 उसको बतला डाली   ,
संभल-संभल कर ,
घर  से   बाहर ,
कैसे   चलना - होगा , 
उसको समझाया ,
कैसे पढ़-लिख-कर ,
 इस जग में अपना नाम ,
कमाना     होगा ,
समझ गयी न देर लगी ,
हो गई  थी ' वो ' 
    जरा     सयानी ,
झट  से  उठी , ,
प्यार   कर,  माँ  को ,
फिर बोली कुछ यूँ ,
मुस्का   कर ,
माँ  !  तुम हो  मेरी ,
सबसे अच्छी -पक्की ; 
 प्यारी  सी  सहेली  ,
बोलूँ  क्या और  ,.
" माँ " से अच्छा ,
और शुभचिंतक ,
बच्चों के लिए नहीं ,
इस   जग  में  कोई .
 

मीनाक्षी श्रीवास्तव