Wednesday, March 19, 2014
हाय नारी !
यही कहानी ।
लुटती अस्मिता तेरी ।
करते तुझसे बेईमानी ।
तेरी बेमिसाली ।
लगती बोली ।
तेरी सच में बदलेगी कहानी !
वे दो ‘शब्द-शहद’ रस उनके …!
वे दो ‘शब्द-शहद’ रस उनके .....!
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आंखे चार हुई, जब उनसे ,
सुर्ख गुलाब हुई मैं, शर्म से.
सुर्ख गुलाब हुई मैं, शर्म से.
वे दो ‘शब्द-शहद’ रस उनके,
मेरे जीवन की शहनाई बने .
मेरे जीवन की शहनाई बने .
सुरभित हुआ जीवन ये अपना
नित नया – मधुमास बना .
नित नया – मधुमास बना .
खिलते - उपवन को हमने ,
बड़े - नेह से सींचा - मिलके .
बड़े - नेह से सींचा - मिलके .
बसंत-बहार, सावन - भादों
,
मिलकर बांटे थे, हम -दोनों .
मिलकर बांटे थे, हम -दोनों .
अजब बनाया जग में न्यारा ,
कुदरत ने ये - रिश्ता है प्यारा .
कुदरत ने ये - रिश्ता है प्यारा .
उस ‘मालिक’
से है, ये दुवा ,
विनती सुन लो ऐ मेरे खुदा !
विनती सुन लो ऐ मेरे खुदा !
बना रहे ये - नेह का साया ,
जब तक मुझमें जीवन समाया .
जब तक मुझमें जीवन समाया .
__________
मीनाक्षी श्रीवास्तव
प्यारी बहू रानी !
बहू रानी !
—-–——
दिल जो जीते ‘ सासू माँ ’ का
वो खुशनसीब बहू रानी होती ।
——
दुनिया की हर दौलत से बड़ी –
शुभाशीषों से झोली भरती ।
——
प्रियतम की प्राणों से प्यारी -
बनके सदा उनके दिल में रहती ।
——
कुल बढ़ाती – मान बढ़ाती ,
जग में यश कमाने वाली -
——
भाग्यशाली संतान वो पाती ।
‘सौभाग्यवती’ संस्कारों वाली-
——
अपनी छाप पीढ़ी को सौंपती -
प्रति-दिन वंदित होती रहती !
——
मीनाक्षी श्रीवास्तव
न जाने कौन ढूँढ़ेगा…..?
न जाने कौन ढूँढ़ेगा…..
न जाने-जमाने को लगी कौन सी ऐसी हवा है,
क्यों अब किसी के लिये कोई भी नहीं सगा है .
..
न बदली में वो छटा है न हवा में वो सबा है .
न परवाने में वो दम है न शम्मा होती फना है.
..
मन में कोई ज़ुबां में कोई फरियाद में कोई और है,
ख्वाब नहीं, हक़ीकत है यह, बस राज़ की बात है .
..
न शानो – शुबा माँ के ममता भरे आँचल की .
न बागवां – चमन का न आबो हवा वतन की .
..
न रौनक़ महफिलों में न मंज़िल मेहनतकशों की,
न जाने कौन ढूँढ़ेगा दवा कोई इस बदले ज़माने की !
..
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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