Tuesday, May 11, 2010

her pal yaad rahe

 १-   हर पल याद रहे क़ि प्रभु हमारे साथ है.
२-    प्रभु क़ि कृपा से ही हमें सारे सुख,मान सम्मान,मिलता है.
३-    इन्ही  की कृपा से हम सारी मुसीबतों,दुविधा से बच सकते है.
४-    ईश्वर क़ि कृपा से हम सदबुद्धि, बल तथा सफलता के शिखर पे  पहुँच पाते है.
५-    वही हमारे सारे काम बनता है ; हमारी मेहनत बिना उसकी कृपा के फलीभूत नहीं हो सकती है.
६-     यहाँ तक क़ि वही हमारे खूबसूरत रंग-रूप  को भी बनाने वाला है.
७-     वही हमारी हर प्रकार से रक्षा करने वाला है; अर्थात प्रभु ही हम सबके माता-पिता हैं ;जैसा क़ि शायद              हम  सभी  जानते तो हैं पैर भूले रहते हैं.

             आज भी भले विज्ञान कहीं परभी क्यों न पहुंचा हो फिर भी उस अद्वतीय शक्ति  स्वरुप परमात्मा से हारा        है ;कब क्या से क्या हो जाए ;एक अनजान सा भय सभी को खाए  रहता है .

       अतः हम सभी को उस परम दिव्य परमात्मा की शरण में रहना चाहिए हर पल  उसका चिंतन कर अपने      
        प्रति  हुए सभी सुखों , सभी श्रेष्ठ बातों के लिए धन्यवाद देते रहना चाहिए . प्रभु की सदा सुखदाई शुभ कृपा 
        हम सब  पर बनी रहें ;साथ ही हमें भी वो अपनी पवित्र भक्ति से , दया से सदा भरपूर बने रखें .

       मीनाक्षी श्रीवास्तव
      

Monday, May 10, 2010

nai parampara

अच्छा हुआ, इस चलन से, कम से कम साल में एक दिन तो शायद, औलादे अपने  माँ- बाप को याद करे  ;अन्यथा उन्हें अपनी इस चकाचौंध एवं व्यस्त जिन्दगी में अपने एवं अपनी बीबी बच्चो के सिवाय कुछ होश ही नहीं रहता    शायद इसलिए ही  इस नई परंपरा ने जन्म लिया है.
                                  पिताजी /daddy /पापाजी-दिवस 

 पिता की विशालता का ,किसी भाषा के किसी शब्दों में जिक्र नहीं हो सकता ;ऐसा प्रयास ही सूरज को दिया दिखाने  जैसा होगा .वैसे कहा भी गया है क़ि --इस जगत में -माता -पिता ही साक्षात् परमेश्वर होते है..
बस हम उनको सम्मान दे उनका सहारा बने  और सदा उनके आशीर्वाद से अपना जीवन धन्य बनाए .
क्योंकि माँ- बाप की  दुवाओ और आशीषो से हमारे  बिगड़ते भाग्य भी संवर जाते है.



मीनाक्षी श्रीवास्तव

ma parmeshwar ka sakar swaroop hai

 जिस प्रकार हम उस  दिव्य परमात्मा की महिमा का गुणगान करने में सदा स्वयं को असमर्थ पाते है ठीक वैसे ही हम अपनी माँ की ममता का गुणगान नहीं कर सकते :यह  तो सिर्फ अहसास की बात है; अभियक्ति की नही .इस जगत में माँ का स्वरूप  साक्षात permeshwar का roop है.

Tuesday, February 23, 2010

teri yaad men .......

तेरी याद ने  दिल के  तारो  को झनझना दिया ,                                                    
भीनी सी खुशबू ने दिल को चमन बना दिया .तेरी याद ने ........

    तनहा     थी    मैं  तुम    दूर      थे ,
    मुरमुरी सी अंगरे ने तुम को करीब ला दिया.   तेरी याद ने ........

 हर   शाम    की     तन्हाई      ने ,
  दीये   की  जलती  लौ  ने  मुझको शमा  बना दिया . तेरी याद ने..........


     मौसम   बने    नए   साल    भी
     मीठी  सी बयार  ने,   मुझे   रहगुजर  बना दिया .   तेरी याद ने ........
   

Saturday, February 20, 2010

kya ab hum kitaben kam parhte hai?

किताबे पढ़ने की प्रवति कम हो गई है  या रूचि कम हो गई है अथवा यूँ कहें की अब हम पहले की तरह किताबो में नहीं दूबतें
हाँ, ये सुच है की एल्क्ट्रोनिक क्रांति ने हमारे जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन किए हैं :जो किसी सीमा तक तो अच्छे हैं और बुरे भी:जैसा हरकिसी  चीज के दो अच्छे बुरे पहलू होतें हैं.ठीक वैसे.परन्तु जब किसी चीज के अच्छे पहलु कम और बुरे पहलू अधिक होने लगे तो वह वस्तु हमारे जीवन को,समाज को,देश-विदेश-दुनियां-जहान को प्रभावित करती है.

tulna