Sunday, July 3, 2011

आख़िर हम.. क्या ..चाहतें.. ...hain


   आख़िर हम.. क्या ..चाहतें..हैं
आज बदलती दुनिया ने हमें किस हद तक बदल डाला है ; एक घटना /प्रसंग -उदहारण के और पर लिख रहीं हूँ -
मेरे बहुत खास परिचितों में से – एक परिवार को मैंने कल रात्रि -भोज पर बुलाया था. अंकल-आंटी उनकी एक बहू ( माही ) और दो प्रपौत्र ; उनका बेटा offic के किसी कम से उस दिन शहर से बाहर गया था और शायद अक्सर ही जाता है ; इस लिए वह नहीं आ पाया था . ‘माही ‘ ने एक बहुत अच्छी बहू की छवि बना रखी थी . शादी के लगभग १६-१७ वर्ष हो गएँ होंगे ; परन्तु वह अकेले न कभी घर से बाहर निकली न ही कभी अकेले किसी समारोह में भाग लिया ; जब भी गई तो परिवार में से कोई न कोई साथ ही गया . शादी के बाद माही का ‘ससुराल’ और सभी घर वाले यानि – “सास-श्वसुर ,पति और बच्चे बस यही उसका संसार .( जैसा कि हर भारतीय नारी मानतीं हैं ) मानो उन्हें हरप्रकार से खुश रखने ; उनका ध्यान रखना ही उसका धर्म रहा है . MBA in finance होने के साथ ही उसके पास Bed . की भी डिग्री हैं फिर भी उसने अपनी इन डिग्री का मूल्य परिवार से बढ़कर नहीं समझा . एक आज्ञाकारी बह जैसे उसने सदा अपनी ‘सासु माँ’ की बात मानी ; कभी अकेले कहीं बाहर जाने की नहीं सोची . यह हम सभी जानतें हैं . जो भी एक बार उससे मिलता है ; माही की तारीफ़ करता है .माही सच में बहुत अच्छे स्वाभाव की है.
परन्तु .. वर्षों बाद हुई इस मुलाक़ात में – भोजन के मध्य में बातों के दौरान मैंने महसूस किया कि-जिस बहू की आंटी पहले तारीफ़ करती नहीं थकती थीं ; आज मैं देखती जा रहीं हूँ की वे ‘ माही’ को किसी न किसी बात पे टोंक रहीं थीं . कभी ताने देंती -कभी ‘बेवकूफ’ कहतीं ; तो कभी कहती – अरे आजतक ये कभी अकेले घर की सीढ़ियों से नहीं उतरीं कहीं और जाने की तो छोड़ दो.. (जबकि यदि शुरू से उसे जाने को या इतनी आज़ादी देंती तो शायद बात ही कुछ और होती ).तब तो उसकी इन्हीं सभी बातों से घर वाले प्रसन्न रहतें थें. चाहती तो वह भी जॉब कर लेती परन्तु तब घरवालों को नौकरी वाली बहू नहीं पसंद थी परन्तु अब औरों की देखा- देखी
या आज लगभग हर घर में बहू-बेटिया जॉब कर रहीं हैं ; आंटी भी यही चाहती हैं की वह ‘भी’ औरों की तरह नौकरी करे, बच्चों को स्कूल / कोचिंग से pick -up एंड ड्रॉप करे डॉ. से लेकर यानि घर से बाहर के भी वो सारे काम करे .( घर के भीतर के तो वो सभी काम संभालती है). .उसमे कोई भी समझौता नहीं और अब उम्मीद ऐसी की जा रहीं हैं की ‘माही’ बाहर की भी सारी जिम्मेदारी उठाये . घरवालों की अपेक्षाएं माही से कुछ ज्यादा ही बढ़ गईं हैं . क्योंकि आजकल सारी ledies जॉब के साथ बाहर का काम भी करती है , घर का भी करती हैं .शायद आंटी जानतीं नहीं कि घर से बाहर काम करने वाली- रोज अपने माता-पिता / सास – श्वसुर , घर , मेहमान का कितना ध्यान रख पाती हैं . उनको नहीं पता कि कैसे फटाफट काम होता है, ( उसमें घरवाले भी कितना सहयोग देतें हैं ; उन्हें शयद पता नहीं ). एक कामकाजी महिला – घर के सभी सदस्यों की खान-पान और देख-भाल से सम्बंधित सारी फरमाइशें कितनी पूरी कर पाती हैं ? कितने ही ऐसे काम हैं जो माही बखूबी कर लेती है ; जो अन्य कामकाजी महिला सोचने की भी हिम्मत नहीं कर पाती. माही जितने प्यार से सबका ध्यान रखती है एक कामकाजी महिला के पास इन सब बातों के लिए इतना टाइम ही नहीं .बस भागम- भाग भरी होती है उनकी ज़िन्दगी . लगता है .. घरवाले…….आंटी .. इन मूल्यों को भूल रहें .. हैं..शायद समय ने उनको भी अपने प्रभाव में ले लिया है…
मैंने धीरे से बातों के दौरान जाना कि- ‘माही’ अब वह घरवालों के इस व्यवहार से डरी हुई है ; उसे बहुत घबराहट होने लगी है. आज उसकी यह स्थिति हो गई है कि – उसे अकेले बाहर जाने में बड़ी हिचकिचाहट होती है . बहुत डर लगता है ; इस लिए उसकी हिम्मत ही नहीं पड़ती , और उसकी इसी बात पर सभी ताना मारतें हैं . वो मुझसे बोली – दीदी- अब मुझमें हिम्मत नहीं -मुझे पहले तो कभी भी अकेले जाने को नहीं कहा जाता था और अब….? मैं क्या करूँ..? फिर घर का इतना काम और फिर बाहर …मैं ..कैसे…दोनों..?
सचमुच …मैं भी सोच में पड़ गई …… “आखिर हम क्या चाहतें हैं..” आज सारे रिश्ते कितने बदल गएँ हैं – आज घर का , दिलो-दिमाग के सुकून का कोई मोल नहीं है. अपेक्षाएं बढती ही जा रहीं हैं…बढती …ही…जा रहीं हैं ..जो कहीं थमने का नाम नहीं ..ले रहीं हैं…
अकेले ..’ माही ‘ कि ही बात नहीं ; माही जैसी कई ऐसी युवतियां हैं जो इस पीड़ा से गुजर रहीं हैं . काश ! हम अपनी सोच में ऐसी जाग्रति ला सकें ; जिससे – सुकून भरी जिंदगी का आनंद उठा सकें .
मीनाक्षी श्रीवास्तव