अच्छा हुआ, इस चलन से, कम से कम साल में एक दिन तो शायद, औलादे अपने माँ- बाप को याद करे ;अन्यथा उन्हें अपनी इस चकाचौंध एवं व्यस्त जिन्दगी में अपने एवं अपनी बीबी बच्चो के सिवाय कुछ होश ही नहीं रहता शायद इसलिए ही इस नई परंपरा ने जन्म लिया है.
पिताजी /daddy /पापाजी-दिवस
पिता की विशालता का ,किसी भाषा के किसी शब्दों में जिक्र नहीं हो सकता ;ऐसा प्रयास ही सूरज को दिया दिखाने जैसा होगा .वैसे कहा भी गया है क़ि --इस जगत में -माता -पिता ही साक्षात् परमेश्वर होते है..
बस हम उनको सम्मान दे उनका सहारा बने और सदा उनके आशीर्वाद से अपना जीवन धन्य बनाए .
क्योंकि माँ- बाप की दुवाओ और आशीषो से हमारे बिगड़ते भाग्य भी संवर जाते है.
मीनाक्षी श्रीवास्तव
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
welcome in my blog.plz write your good comments to incourage me.thanks.